प्याज की वैज्ञानिक खेती | प्याज की उन्नत खेती | pyaj ki unnat kheti | प्याज की खेती की जानकारी | onion farming
प्याज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी :
1. जलवायु:
- प्याज के लिए ठंडी और सूखी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है।
- प्याज की बुवाई के समय ठंडा मौसम और कंद के विकास के दौरान गर्म मौसम बेहतर होता है।
- प्याज के बीज के अंकुरण के लिए 15-20°C तापमान अच्छा होता है, जबकि कंद बनने के समय 25-30°C तापमान उपयुक्त होता है।
- प्याज को उगने के दौरान अत्यधिक बारिश की जरूरत नहीं होती, क्योंकि इससे फसल पर कीट और रोग का खतरा बढ़ जाता है।
2. मिट्टी:
- प्याज (pyaaj) की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट (loamy) मिट्टी उपयुक्त होती है।
- मिट्टी की pH मान 6-7 के बीच होनी चाहिए। हल्की अम्लीय से लेकर तटस्थ मिट्टी अच्छी मानी जाती है।
- प्याज की जड़ें उथली होती हैं, इसलिए मिट्टी को गहरी जुताई करके नरम और समृद्ध बनाया जाना चाहिए, जिससे जड़ें आसानी से फैल सकें।
- जैविक पदार्थ से समृद्ध मिट्टी प्याज के लिए लाभकारी होती है।
अगर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा कम हो, तो जैविक खादों का उपयोग करना फसल की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।
भूमि की तैयारी
प्याज (onion) की खेती के लिए भूमि की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है। उचित तैयारी से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार होता है। भूमि की तैयारी के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:
- गहरी जुताई: पहले खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी नरम हो जाए और जड़ें अच्छी तरह से फैल सकें। गहरी जुताई से मिट्टी के अंदर छिपे हुए कीट और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
- खरपतवार हटाना: जुताई के बाद खेत में मौजूद खरपतवारों को पूरी तरह से निकालना जरूरी होता है। खरपतवार प्याज के पौधों के विकास में बाधा डालते हैं।
- मिट्टी का चूर्ण बनाना: खेत की मिट्टी को अच्छे से चूर्णित करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इससे जड़ों का विकास सुचारू रूप से हो सकेगा।
- सही मात्रा में उर्वरक डालना: जुताई के समय खेत में अच्छी मात्रा में जैविक खाद (जैसे गोबर की खाद या कंपोस्ट) मिलाना चाहिए। इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।
- सिंचाई की व्यवस्था: भूमि की सतह को समतल बनाएं ताकि सिंचाई के समय पानी का सही वितरण हो सके और जलभराव न हो।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
प्याज की बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता के लिए उचित खाद एवं उर्वरक प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। खाद एवं उर्वरक का सही उपयोग पौधों के विकास, उपज और मिट्टी की सेहत को बनाए रखने में मदद करता है। निम्नलिखित बिंदु खाद एवं उर्वरक प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं:
- जैविक खाद: खेत की पहली जुताई के समय प्रति हेक्टेयर 15-20 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट मिलाएं। जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार होता है, जिससे पौधों को पोषण मिलता है।
- नाइट्रोजन (N): प्याज की बेहतर पत्तियों और कंद विकास के लिए नाइट्रोजन आवश्यक होता है। प्रति हेक्टेयर 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रयोग करें। नाइट्रोजन को तीन भागों में बांटकर देना चाहिए— पहली खुराक बुवाई के समय, दूसरी 30-40 दिन बाद और तीसरी 60-70 दिन बाद।
- फॉस्फोरस (P): फॉस्फोरस पौधों की जड़ों को मजबूत बनाने और कंद के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। प्रति हेक्टेयर 50-60 किलोग्राम फॉस्फोरस का उपयोग करें। इसे बुवाई के समय खेत में मिलाना चाहिए।
- पोटाश (K): प्याज की बेहतर गुणवत्ता और रोगों से सुरक्षा के लिए पोटाश महत्वपूर्ण है। प्रति हेक्टेयर 80-100 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। पोटाश को भी फॉस्फोरस के साथ बुवाई के समय मिलाना चाहिए।
- सूक्ष्म पोषक तत्व: प्याज के पौधों को जिंक, सल्फर, बोरॉन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी जरूरत होती है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर इनका उपयोग करें। सल्फर प्याज के कंद की गंध और स्वाद को बढ़ाने में मदद करता है। प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम सल्फर का उपयोग किया जा सकता है।
- फर्टिगेशन (सिंचाई के साथ उर्वरक देना): ड्रिप सिंचाई पद्धति के साथ उर्वरकों का उपयोग करते समय घुलनशील उर्वरकों का चयन करें और उन्हें पानी के साथ नियमित अंतराल पर दें। इससे पौधों को उर्वरक का बेहतर अवशोषण होता है।
- मिट्टी परीक्षण: खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाकर यह जानें कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी है और उसी के अनुसार उर्वरकों का चयन करें।
खाद और उर्वरकों का सही समय और मात्रा में उपयोग करने से प्याज की फसल का उत्पादन बढ़ता है और गुणवत्ता भी बेहतर होती है।
सिंचाई एवं जलनिकास
प्याज की खेती में सिंचाई और जलनिकास का सही प्रबंधन फसल की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्याज की जड़ें उथली होती हैं, इसलिए पौधों को समय पर और उचित मात्रा में पानी देना जरूरी होता है। इसके साथ ही जलनिकास का भी सही प्रबंध होना चाहिए ताकि जलभराव से फसल को नुकसान न हो।
सिंचाई
- पहली सिंचाई: प्याज की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो सकें।
- सिंचाई की आवृत्ति: प्याज की फसल को हर 7-10 दिन में सिंचाई की जरूरत होती है। गर्मी के मौसम में पानी की आवृत्ति बढ़ाई जा सकती है, जबकि ठंड के मौसम में इसे कम किया जा सकता है।
- कंद बनने के समय सिंचाई: प्याज के कंद बनने के समय सिंचाई सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस समय पौधों को पर्याप्त पानी मिलना चाहिए, जिससे कंद अच्छे से विकसित हो सकें।
- कटाई से पहले सिंचाई बंद करें: फसल की कटाई से लगभग 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए ताकि कंदों का पकना ठीक से हो सके और वे लम्बे समय तक भंडारण के योग्य हों।
- ड्रिप सिंचाई: प्याज की खेती में ड्रिप सिंचाई का उपयोग जल की बचत और बेहतर उत्पादन के लिए किया जा सकता है। इससे पौधों को आवश्यकतानुसार जल मिलता है और जल का अपव्यय नहीं होता।
जलनिकास
- अच्छी जलनिकासी वाली मिट्टी: प्याज की खेती के लिए अच्छी जलनिकासी वाली मिट्टी का होना अनिवार्य है। जलभराव की स्थिति में प्याज की जड़ें सड़ सकती हैं और फसल बर्बाद हो सकती है।
- खेत की समतलता: खेत को समतल और बेड बनाकर तैयार करें ताकि पानी का ठहराव न हो। अगर खेत असमतल हो, तो पानी जमा होकर जलभराव की स्थिति पैदा कर सकता है।
- जलनिकासी नालियां: खेत में जलनिकासी के लिए उचित नालियों की व्यवस्था करें ताकि अतिरिक्त पानी आसानी से बाहर निकल सके।
- बारिश के मौसम में सावधानी: बारिश के मौसम में विशेष ध्यान रखें कि खेत में जलभराव न हो। इसके लिए नालियों की सफाई और जलनिकास की व्यवस्था पहले से सुनिश्चित करें।
सिंचाई और जलनिकास का उचित प्रबंधन फसल को रोगों से बचाने, कंद के विकास में सहायता करने और फसल की गुणवत्ता बनाए रखने में महत्वपूर्ण होता है।
खरपतवार नियंत्रण
प्याज की फसल में खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि खरपतवार पोषक तत्वों और पानी की प्रतिस्पर्धा करके फसल की वृद्धि को प्रभावित करते हैं। साथ ही, ये कीट और रोग फैलाने का भी स्रोत बन सकते हैं। इसलिए, फसल की बेहतर उपज और गुणवत्ता के लिए सही समय पर खरपतवारों का प्रबंधन करना जरूरी है।
खरपतवार नियंत्रण के तरीके
- मैनुअल निराई (हाथ से खरपतवार हटाना): खेत में जब भी खरपतवार दिखाई दें, तो उन्हें हाथ से निकालना एक पारंपरिक और प्रभावी तरीका है। विशेष रूप से फसल के शुरुआती चरण में निराई-गुड़ाई करने से खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह विधि जैविक खेती में ज्यादा उपयोग की जाती है।
- कुल्पा चलाना: प्याज की फसल में नियमित रूप से कुल्पा (हो) चलाना चाहिए, जिससे मिट्टी नरम हो और खरपतवारों का उन्मूलन हो सके। कुल्पा चलाने से मिट्टी में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है, जो पौधों के विकास के लिए फायदेमंद होता है।
- मल्चिंग: खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए खेत में जैविक या अजैविक मल्च (Mulch) जैसे पुआल, प्लास्टिक शीट, या अन्य सामग्रियों का उपयोग किया जा सकता है। मल्चिंग से खरपतवारों का विकास रुकता है और मिट्टी की नमी भी बनी रहती है।
- रासायनिक विधि: अगर खरपतवारों की अधिक समस्या हो, तो खरपतवार नाशक (हर्बिसाइड्स) का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, बुवाई से पहले पेन्डीमेथालिन (Pendimethalin) जैसे प्री-इमर्जेंस हर्बिसाइड का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, पोस्ट-इमर्जेंस हर्बिसाइड्स का भी प्रयोग खरपतवारों के नियंत्रण के लिए किया जा सकता है। हालांकि, रासायनिक खरपतवार नियंत्रण का उपयोग सावधानी से और अनुशंसित मात्रा में ही करें।
- रोटेशनल फसलें: प्याज के बाद विभिन्न फसलों का रोटेशन करने से भी खेत में खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण के महत्वपूर्ण बिंदु
- प्याज के शुरुआती 30-45 दिन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय में खरपतवारों की अधिकता से फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
- खरपतवार नियंत्रण का समय मौसम, मिट्टी की स्थिति और खेत में खरपतवारों की स्थिति पर निर्भर करता है, इसलिए इनका निरीक्षण करके सही समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
- खरपतवार नियंत्रण में जैविक विधियों को प्राथमिकता दें, ताकि खेत की जैविक संरचना को नुकसान न पहुंचे।
सही समय पर और सही तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने से प्याज की फसल की उपज में वृद्धि होती है और फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
पौध तैयार करना
प्याज की अच्छी फसल के लिए पौध की सही तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है। पौध तैयार करने के लिए उत्तम किस्म के बीजों का चयन, सही मिट्टी का मिश्रण और पौधशाला की देखभाल आवश्यक होती है। पौध तैयार करने की विधि निम्नलिखित चरणों में की जाती है:
1. बीज चयन
- उत्तम किस्म: क्षेत्र और जलवायु के अनुसार प्याज की उन्नत किस्मों का चयन करें। बीज प्रमाणित और रोग-मुक्त होना चाहिए।
- बीज उपचार: बीजों को कवकनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम या थीरम से उपचारित करें। यह बीजों को फफूंद जनित रोगों से बचाता है और अंकुरण दर को बढ़ाता है।
2. पौधशाला की तैयारी
- जगह का चयन: पौधशाला के लिए ऐसी जगह का चयन करें, जहां पर्याप्त धूप आती हो और जलनिकास की व्यवस्था अच्छी हो।
- मिट्टी का मिश्रण: पौधशाला की मिट्टी हल्की, भुरभुरी और अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। इसके लिए मिट्टी में गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाकर जैविक खाद डालें।
- बेड तैयार करना: पौधशाला में 1-1.5 मीटर चौड़े और 15-20 सेमी ऊंचे बेड तैयार करें। बेड की लंबाई खेत की जगह के अनुसार हो सकती है। बेड के बीच 30-40 सेमी की दूरी रखें ताकि पानी और देखभाल में सुविधा हो।
3. बुवाई की विधि
- बीज की मात्रा: 1 हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- बीज बोने का तरीका: तैयार बेड में 1-2 सेमी गहराई पर बीजों को पंक्तियों में बोएं। पंक्तियों के बीच 10 सेमी की दूरी रखें। बीजों को हल्की मिट्टी या जैविक खाद से ढक दें।
- सिंचाई: बीज बोने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे और बीजों का अंकुरण सुचारू हो।
4. पौधशाला की देखभाल
- नियमित सिंचाई: पौधशाला में नमी बनाए रखने के लिए नियमित रूप से हल्की सिंचाई करें, लेकिन जलभराव न होने दें।
- खरपतवार नियंत्रण: पौधशाला में खरपतवार उगने से रोकने के लिए निराई-गुड़ाई करें, जिससे पौधों को पोषण की प्रतिस्पर्धा न करनी पड़े।
- पौध संरक्षण: पौधों को रोगों और कीटों से बचाने के लिए जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करें। पौधों पर नियमित रूप से निरीक्षण करें ताकि कोई समस्या शुरूआत में ही पहचानी जा सके।
- प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा: पौधों को ठंड, अधिक धूप या बारिश से बचाने के लिए पॉलीथीन कवर या शेड नेट का उपयोग करें।
5. पौध का प्रत्यारोपण
- उम्र: प्याज की पौध 6-7 सप्ताह के बाद जब 12-15 सेमी ऊंची हो जाए और उसमें 3-4 पत्तियां निकल आएं, तब प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो जाती है।
- प्रत्यारोपण का समय: प्रत्यारोपण के लिए शाम का समय या ठंडे मौसम का चयन करें ताकि पौधों को झटका न लगे।
- जड़ को काटना: प्रत्यारोपण से पहले पौध की जड़ों को थोड़ा काट लें, इससे जड़ें बेहतर तरीके से विकसित होंगी।
उचित देखभाल और सही समय पर पौध तैयार करने से प्याज की फसल का उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ती है।
कीटों से फसल सुरक्षा
प्याज की फसल को कई तरह के कीट नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसलिए, कीटों की पहचान और नियंत्रण के उचित उपाय करना अत्यंत आवश्यक है। सही समय पर कीटों की रोकथाम और नियंत्रण से फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
प्याज की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीट
- थ्रिप्स (Thrips): यह प्याज की सबसे सामान्य कीट समस्या है। थ्रिप्स पत्तियों से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और उपज में कमी होती है।
- कंद मक्खी (Onion Maggot): कंद मक्खी प्याज के कंदों पर हमला करती है, जिससे कंद सड़ने लगते हैं और फसल खराब हो जाती है।
- लाल मकड़ी (Red Spider Mite): ये कीट पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे बनाते हैं, जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता प्रभावित होती है।
- सफेद मक्खी (Whitefly): यह कीट भी पत्तियों से रस चूसता है और विभिन्न रोगों को फैलाने का कारण बनता है।
- फॉल आर्मीवर्म (Fall Armyworm): यह कीट पत्तियों को खाकर पौधों को नुकसान पहुंचाता है और उत्पादन में कमी का कारण बनता है।
कीट नियंत्रण के उपाय
- समय पर निरीक्षण: खेत की नियमित जांच करते रहें ताकि कीटों का प्रकोप शुरूआती चरण में ही पहचाना जा सके और उन पर तुरंत नियंत्रण किया जा सके।
- जैविक नियंत्रण: कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक कीटनाशकों जैसे नीम तेल, वर्मीकॉम्पोस्ट चाय, या अन्य जैविक स्प्रे का उपयोग करें। यह विधि पर्यावरण के अनुकूल होती है और फसल को हानिकारक रसायनों से बचाती है।
- प्राकृतिक दुश्मनों का उपयोग: कई कीटों के प्राकृतिक शत्रु होते हैं, जैसे कि लेडीबर्ड बीटल और ट्राइकोग्रामा वास्प्स। इनका उपयोग कीटों के प्रबंधन के लिए किया जा सकता है।
- फसल चक्र (Crop Rotation): फसल चक्र अपनाने से कीटों की समस्या को कम किया जा सकता है। एक ही स्थान पर लगातार एक ही फसल उगाने से कीटों की संख्या बढ़ जाती है, इसलिए विभिन्न फसलों का चक्र अपनाएं।
- पॉलीकल्चर पद्धति: प्याज के साथ अन्य फसलों को मिलाकर उगाने से कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है, क्योंकि कुछ फसलें कीटों को आकर्षित नहीं करतीं।
- फेरोमोन ट्रैप्स: थ्रिप्स, मक्खियों, और अन्य कीटों को पकड़ने के लिए फेरोमोन ट्रैप्स का उपयोग करें। ये ट्रैप्स कीटों को आकर्षित करके उनकी संख्या को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- रासायनिक कीटनाशक: गंभीर कीट प्रकोप की स्थिति में रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड, साइपरमेथ्रिन, या एसीफेट जैसे अनुशंसित कीटनाशकों का उपयोग करें। कीटनाशकों का उपयोग सावधानीपूर्वक और अनुशंसित मात्रा में ही करें।
- समय पर निराई-गुड़ाई: खरपतवारों को समय पर हटाने से कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है, क्योंकि कई कीट खरपतवारों पर आश्रित होते हैं।
कीटों से बचाव के महत्वपूर्ण बिंदु
- प्याज के शुरुआती 30-45 दिन कीटों के प्रकोप के लिए सबसे संवेदनशील होते हैं, इसलिए इस अवधि में फसल की निगरानी और प्रबंधन अधिक सावधानी से करें।
- कीटनाशकों का उपयोग करते समय उचित सुरक्षा उपकरण पहनें और निर्देशानुसार ही उपयोग करें, ताकि फसल और पर्यावरण को हानि न पहुंचे।
- बुवाई के बाद कीट प्रबंधन की योजना बनाएं और फसल की नियमित निगरानी रखें, ताकि किसी भी समस्या का समय रहते समाधान किया जा सके।
कीटों से फसल की सुरक्षा के लिए सही समय पर उपाय करना और जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है। इससे फसल की गुणवत्ता और उपज दोनों में सुधार होता है।
कंदों की खुदाई एवं भंडारण
प्याज की अच्छी फसल प्राप्त करने के बाद उसकी सही समय पर खुदाई और भंडारण करना जरूरी होता है। यदि कंदों की खुदाई और भंडारण सही तरीके से नहीं किया जाए, तो फसल को नुकसान हो सकता है और भंडारण अवधि कम हो सकती है।
1. कंदों की खुदाई
- खुदाई का सही समय: प्याज की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है जब कंद पूरी तरह विकसित हो जाते हैं और पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं। आमतौर पर यह फसल बोने के 100-120 दिन बाद होता है।
- खुदाई से पहले सिंचाई बंद करें: फसल की खुदाई से लगभग 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें ताकि कंद पूरी तरह सूख जाएं और उनमें अधिक नमी न रहे।
- खुदाई की विधि: खुदाई के लिए कुदाल या हाथ से कंदों को सावधानीपूर्वक जमीन से निकालें ताकि कंदों को कोई नुकसान न पहुंचे। खुदाई के समय ध्यान रखें कि कंदों पर चोट या कट न लगे, क्योंकि इससे उनका भंडारण जीवन कम हो जाता है।
- धूप में सूखाना: खुदाई के बाद कंदों को 2-3 दिन तक धूप में सूखने के लिए रखें ताकि बाहरी त्वचा (छिलका) सूख जाए और वे भंडारण के लिए तैयार हो सकें।
2. कंदों की सफाई
- मृत पत्तियों और मिट्टी को हटाना: सूखने के बाद कंदों से सूखी पत्तियां और मिट्टी को हल्के हाथ से हटा दें।
- क्षतिग्रस्त कंदों को अलग करना: कटे-फटे, सड़े या रोगग्रस्त कंदों को अच्छी गुणवत्ता वाले कंदों से अलग कर लें ताकि भंडारण के दौरान स्वस्थ कंदों को नुकसान न हो।
3. भंडारण
- भंडारण के लिए उपयुक्त स्थान: प्याज के कंदों को भंडारण के लिए ऐसी जगह पर रखें, जहां अच्छी वेंटिलेशन हो और तापमान नियंत्रित रहे। प्याज को हवादार, सूखे, और ठंडे स्थान पर भंडारित करना चाहिए, ताकि उनकी गुणवत्ता बनी रहे।
- तापमान और आर्द्रता: प्याज के भंडारण के लिए 25-30°C का तापमान और 65-70% आर्द्रता सबसे उपयुक्त होती है। अत्यधिक आर्द्रता से कंदों में सड़न हो सकती है, और बहुत कम आर्द्रता से कंद सिकुड़ सकते हैं।
- भंडारण की व्यवस्था: प्याज को लकड़ी या बांस से बने प्लेटफार्म पर रखें, ताकि हवा का उचित प्रवाह बना रहे। कंदों को सीधी जमीन पर न रखें, इससे सड़ने का खतरा रहता है। कंदों को एक के ऊपर एक अधिक मात्रा में न रखें, क्योंकि इससे वे दब सकते हैं और खराब हो सकते हैं।
- सड़े और खराब कंदों की नियमित जांच: भंडारण के दौरान कंदों की समय-समय पर जांच करते रहें। यदि कोई कंद सड़ा या खराब होता है, तो उसे तुरंत हटा दें, ताकि अन्य कंद खराब न हों।
4. भंडारण के दौरान सावधानियां
- नमी से बचाव: भंडारण स्थल पर नमी का ध्यान रखें। अत्यधिक नमी से कंदों में फफूंद और सड़न का खतरा बढ़ जाता है।
- हवा का प्रवाह: भंडारण के स्थान पर हवा का प्रवाह निरंतर बना रहना चाहिए। यह कंदों को ताजगी बनाए रखने में मदद करता है।
- सीधी धूप से बचाव: कंदों को भंडारण के दौरान सीधी धूप में न रखें, इससे उनका रंग और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
खुदाई और भंडारण के सही प्रबंधन से प्याज के कंदों की गुणवत्ता और भंडारण अवधि में वृद्धि होती है, जिससे लंबे समय तक उनकी ताजगी और बाजार मूल्य बनाए रखा जा सकता है।