लहसुन की वैज्ञानिक खेती कैसे करे ? | लहसुन की उन्नत खेती के लिए दिशा निर्देश

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लहसुन की वैज्ञानिक खेती

भारत में लहसुन की खेती garlic farming मुख्य रूप से रबी के मौसम में की जाती है, जब ठंडी और शुष्क जलवायु होती है। लहसुन का वैज्ञानिक नाम एलियम सैटिवुम (Allium sativum) है यह एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है, जिसका उपयोग भोजन के स्वाद और औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। भारत लहसुन उत्पादन में विश्व में अग्रणी देशों में से एक है।

लहसुन की खेती के प्रमुख क्षेत्र:

भारत में लहसुन की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और हरियाणा जैसे राज्यों में की जाती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश लहसुन के सबसे बड़े उत्पादक राज्य हैं।


लहसुन की वैज्ञानिक खेती कैसे करे | लहसुन की खेती करने का तरीका | लहसुन की उन्नत खेती 

1. जलवायु और भूमि की तैयारी

जलवायु

लहसुन की खेती मुख्यतः रबी मौसम में होते हैं क्योंकि अत्यन्त गर्म और लम्बे दिन वाला समय इसके कन्दों की बढ़वार के लिए उपयुक्त नहीं होता है। ऐसी जगह जहाँ न तो बहुत गर्मी हो और न बहुत ठण्डा हो, लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त है।

लहसुन की खेती ठंडी और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। 12-20°C तापमान इसके लिए सबसे उपयुक्त होता है।

मिट्टी का प्रकार

दोमट और बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उत्तम है। मिट्टी का pH 6-7 के बीच होना चाहिए। जल निकासी का ध्यान रखना आवश्यक है।

भूमि की तैयारी

खेत की अच्छी तरह जुताई करें और 15-20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिलाएं। खेत को समतल करें और क्यारियां बनाएं।

2. बीज चयन और बुवाई

बीज का चयन

लहसुन की अच्छी गुणवत्ता वाली किस्में चुनें। बीज के लिए लहसुन की कली (बल्ब) का उपयोग किया जाता है। अच्छे, स्वस्थ और 8-10 ग्राम वजन की कलियों का चयन करें।

बुवाई का समय

20 सितम्बर से 20 नवम्बर तक लहसुन की बुआई कर देना चाहिए 

बुवाई विधि

क्यारियों में 10-15 सेमी की दूरी पर 4-5 सेमी गहराई में लहसुन की कलियों को बोएं। ध्यान रहे की कलियों का मुंह या नुकीला हिस्सा ऊपर की और रखे |

3. खाद और उर्वरक प्रबंधन

लहसुन की अच्छी पैदावार के लिए गोबर की खाद के साथ-साथ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की आवश्यकता होती है।

  • गोबर की खाद या कम्पोस्ट: 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टर
  • नेत्रजन: 80 से 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर
  • फास्फोरस: 50 से 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर
  • पोटाश: 70 से 80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर
  • जिंक सल्फेट: 20 से 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर

नाइट्रोजन को दो बार में दें: पहली बार बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद और दूसरी बार 6-7 सप्ताह बाद।

खाद एवं उर्वरक देने की विधि

कम्पोस्ट या गोबर खाद का प्रयोग रोपाई/बोआई से 15 से 20 दिन पहले डालकर जुजाई करना चाहिए। नेत्रजन के मात्रा को तीन बराबर भाग में बाँट कर एक भाग नेत्रजन एवं फास्फोरस, पोटाश तथा ज़िक की पूरी मात्रा मिट्टी में अंतिम जुताई या रोपाई/बोआई के दो दिन पहले मिला दें। नेत्रजन की शेष मात्रा उपरिवेशन (टॉपड़ेसिंग) की जाती है। पहला उपरिवेशन 25 से 30 दिन के बाद खेतों से घास निकालकर सिंचाई करने के बाद एवं दूसरा उपरविशन पहले उपरिवेशन से 30 से 50 दिन के बाद करें।

4. सिंचाई

लहसुन को नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें।

नियमित अंतराल पर सिंचाई करें, खासकर जब मिट्टी सूखने लगे। फसल की वृद्धि और बल्ब के गठन के समय अधिक सिंचाई आवश्यक होती है।

कटाई से 15-20 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें।

5. निराई और गुड़ाई और खरपतवार प्रबंधन

निराई-गुड़ाई फसल को खरपतवारों से बचाने और पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए आवश्यक होती है।

खरपतवार को खुरपी की सहायता से निकालते रहना चाहिए। लहसुन के फसल (खेत) से हमेशा निराई-गुड़ाई कर के खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।

2-3 निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-40 दिन के अंतराल पर करें।

6. कीट और रोग प्रबंधन

  • थिप्स : ये कीट आकार में छोटे तथा पत्तियों एवं तनों से रस चुसते हैं जिससे उन पर उजले धब्बे पड़ जाते हैं। इस कीट से बचाव के लिये मेटासिसटॉक्स 1.5 एम.एल. प्रति लीटर पानी + 0.1 प्रतिशत सेनडोमिट का तीन से चार छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें।

लहसुन में प्रमुख रूप से थ्रिप्स, लीफ ब्लाइट, सफेद सड़न जैसी समस्याएं होती हैं।

जैविक या रासायनिक कीटनाशक का उपयोग करें। रोग नियंत्रण के लिए फफूंदनाशक का छिड़काव करें।

  • रोग : नील लोहित धब्बे - रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। इस रोग से बचाव के लिए इन्डोफिल एम-45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से 15 दिन के अन्तर पर दो से तीन छिड़काव करें। मृदु रोमल फफूंदी - इसमें पत्तियों की सतह पर एवं डंठल पर बैगनी रंग के रोयें उभर आते हैं। इसके रोकथाम के लिए 3 ग्राम जिनेव या इन्डोफिल एम-45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें।
  • मृदु रोमल फफूंदी : इसमें पत्तियों की सतह पर एवं डंठल पर बैगनी रंग के रोयें उभर आते हैं। इसके रोकथाम के लिए 3 ग्राम जिनेव या इन्डोफिल एम-45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें।

7. कटाई और भंडारण 

लहसुन की फसल 130 से 180 दिन में खोदाई के लिये तैयार हो जाती है। जिस समय पौधों की पत्तियाँ पीली पढ़ जाये और सुखने लग जाये सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। 

इसके कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद गाँठों को 3-4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 3 सेमी. छोड़कर पत्तियाँ को केन्द्रों से अलग कर लेते हैं। 

अच्छी तरह सुख जाने के बाद गांठों को 70 प्रतिशत आद्रता पर 6 से 8 महीनों तक भण्डारित किया जा सकता है। 

6 से 8 महीनों के भण्डारण में 15 से 20 प्रतिशत तक नुकसान सुखने से होता है। पत्तियों सहित बण्डल बनाकर रखने से कम हानि होती है।

लहसुन को ठंडी और सूखी जगह पर संग्रहित करें ताकि उसकी गुणवत्ता बनी रहे।

8. लहसुन का उत्पादन कितना होता है ?

लहसुन का उत्पादन किस्मों एवं फसल की देखरेख पर निर्भर करता है। इसकी औसत ऊपज 100 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है |

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