चना पूसा मानव 20211 : चने की बंपर उत्पादन देने वाली नई किस्म pusa manav

mpkisannews
By -
0
चना (काले छोले) एक महत्वपूर्ण दलहन फसल है जिसका भारत में बहुत महत्व है। न केवल भारतीय व्यंजनों में बल्कि देश की बढ़ती आबादी के लिए प्रोटीन के प्रमुख स्रोत के रूप में भी काम आता है । यह बहुमुखी अनाज विभिन्न व्यंजनों, आटे और बेकरी उत्पादों सहित पाककला के कई तरह के अनुप्रयोगों में अपना स्थान पाता है,

भारत में चने की खेती व्यापक रूप से की जाती है और यह देश की कुल दलहनी फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। 

देश के प्रमुख चना उत्पादक राज्य:

मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य चने की खेती में अग्रणी हैं। इनमें से मध्य प्रदेश को "चना बाउल" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह राज्य देश के कुल चना उत्पादन में सबसे अधिक योगदान करता है।

चने की नई किस्म पूसा मानव 20211 pusa manav 20211

"पूसा मानव" pusa manav 20211 चना भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया एक चने का उन्नत किस्म है। यह चना की पूसा श्रृंखला की एक किस्म है, जिसे विशेष रूप से उच्च उत्पादन क्षमता, बीमारी प्रतिरोधक क्षमता, और सूखा सहनशीलता के लिए जाना जाता है। 

इस चने की फसल की समयावधि और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार इसे विभिन्न क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। किसानों के लिए इसका चयन करना एक लाभकारी विकल्प हो सकता है, क्योंकि यह आमतौर पर कम पानी में भी अच्छी उपज देता है।

पूसा मानव pusa manav 20211 चने का उत्पादन :

पूसा मानव को (pusa manav-20211) भी कहा जाता है |पूसा मानव चना के अधिकतम उत्पादन प्रति हैक्टेयर की बात करे तो 35 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक बताया जा रहा है |

अगर उत्पादन प्रति एकड़ की बात करे तो करीब 14 से 16 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है. 

वहीं एवरेज उत्पादन 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक लिया जा सकता है |

यह किस्म सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों में प्रथम स्थान पर है | पूरे मध्यप्रदेश में बहुत ही कम किसानों के पास ही इस किस्म का बीज उपलब्ध और यह आसानी से बाजार में नहीं मिल रहा |

अगर आप भी इस साल चने की बंपर पैदावार लेना चाहते हैं, तो 5 नवंबर से पूसा मानव चना की बुवाई शुरू कर सकते हैं. 



पूसा मानव / pusa manav 20211 किस्म की विशेषताएं 

पूसा मानव pusa manav चना की प्रमुख विशेषता यह है कि यह रोगमुक्त है. अन्य किस्मों में उखटा रोग की संभावना होती है, जिसमें पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधा सूखने लगता है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. 

पूसा मानव किस्म किसानों के उत्थान के लिए तैयार किया गया है, इस किस्म में फंगस जनित रोग नही लगता यह किस्म रोग प्रतिरोधी क्षमता के साथ अधिकतम उपज देने वाली किस्म है , इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में अधिक फुटाओ (ब्रांच) देखा गया है साथ ही फलियों में दानों की संख्या भी 2 से 3 होती है 

पूसा मानव किस्म सूखे के प्रति सहनशील व कम सिंचाई में अच्छा उत्पादन देने वाली किस्मों में से एक है |

चने की खेती के लिए आवश्यक बिंदु :

  1. भूमि का चयन:
    • अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी चने की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
    • मिट्टी का पीएच स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए।
  2. बुवाई का समय:
    • उत्तरी भारत में रबी मौसम के लिए बुवाई का सही समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के अंत तक होता है।
    • दक्षिणी और पश्चिमी भारत में, इसे अक्टूबर की शुरुआत से नवंबर के मध्य तक बोया जा सकता है।
  3. बीज की दर और बीज उपचार:
    • बीज दर: प्रति हेक्टेयर लगभग 75 से 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज की मात्रा दानों के आकार के साथ कम या ज्यादा भी  हो सकती है |
    • बीज उपचार: बुवाई से पहले बीजों को कवकनाशी और जैव उर्वरक से उपचारित करना चाहिए, ताकि रोग प्रतिरोधकता बढ़े और अंकुरण में सुधार हो।
  4. बुवाई की विधि:
    • बीज को 6 - 8 सेमी की गहराई पर बोया जाना चाहिए।
    • कतार से कतार की दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखी जाती है।

फसल प्रबंधन:

  1. सिंचाई:
    • चना की फसल को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। सामान्यतः फसल की बुवाई के बाद एक बार और फूल आने के समय सिंचाई करनी चाहिए।
    • अधिक पानी की स्थिति में फसल को नुकसान हो सकता है, इसलिए अधिक सिंचाई से बचें।
  2. खाद और उर्वरक:
    • नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश की संतुलित मात्रा में जरूरत होती है।
    • फॉस्फोरस के लिए 60 किलोग्राम DAP प्रति हेक्टेयर का प्रयोग किया जा सकता है।
    • गोबर की खाद या अन्य जैविक खाद का उपयोग मृदा की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
  3. कीट और रोग प्रबंधन:
    • समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें और आवश्यकतानुसार जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करें।
    • फली छेदक कीट और उकठा रोग से बचाव के लिए समुचित कीटनाशक और रोगनाशी का छिड़काव करें।

कटाई और उपज:

  1. कटाई का समय:
    • जब पौधे की पत्तियाँ पीली पड़ने लगे और फली पककर सूख जाए तो फसल काटी जा सकती है।
    • कटाई के बाद, फसल को कुछ समय के लिए धूप में सुखाया जाता है।
  2. उत्पादन:
    • उपरोक्त कृषि पद्धतियों का पालन करते हुए चना की उपज लगभग 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आसानी से प्राप्त किया जा सकती है।

भंडारण:

कटाई के बाद चनों को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें ताकि उनमें नमी न रहे और लंबे समय तक सुरक्षित रह सकें।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)