एल नीनो और ला नीना और इसका भारतीय मॉनसून पर प्रभाव

अक्सर एल नीनो (El Nino), ला नीना (La Nina), इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) जैसे शब्द सुनने को मिलते हैं। ये कोई रहस्यमयी शब्द नहीं, बल्कि...

अल नीनो और ला नीना
भारत की अर्थव्यवस्था, कृषि और जनजीवन की धड़कन मानसून की लय पर निर्भर करती है। यह लय कभी मधुर होती है तो कभी बेसुरी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह लय तय होती कैसे है? मौसम पूर्वानुमान में अक्सर एल नीनो (El Nino), ला नीना (La Nina), इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) जैसे शब्द सुनने को मिलते हैं। ये कोई रहस्यमयी शब्द नहीं, बल्कि प्रकृति के वे शक्तिशाली पैरामीटर हैं जो हज़ारों किलोमीटर दूर समुद्र की गहराइयों में घटित होने वाली घटनाएं हैं और सीधे हमारे मानसून पर अपनी छाप छोड़ते हैं।

इस लेख में, हम इन्हीं पैरामीटर्स की गहराई में उतरेंगे। हम समझेंगे कि ये क्या हैं, कैसे काम करते हैं, और कैसे इनका आपसी तालमेल एक अच्छे या बुरे मानसून का कारण बनता है। साथ ही, हम 2025 के मानसून की current स्थिति और आने वाले दिनों के पूर्वानुमान पर भी एक विस्तृत नज़र डालेंगे।

मानसून के महान नियंत्रक - ENSO (एल नीनो-सदर्न ऑसिलेशन)

1 एल नीनो और ला नीना: प्रशांत महासागर का गर्म और ठंडा रूप

एल नीनो और ला नीना, ENSO (El Nino-Southern Oscillation) चक्र के दो विपरीत चेहरे हैं। यह चक्र प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र की सतह के तापमान और वायुमंडलीय दबाव में उतार-चढ़ाव से जुड़ा है।

  • एल नीनो (El Nino): स्पेनिश भाषा के शब्द "एल नीनो" का अर्थ है "छोटा लड़का" या "ईसा मसीह"। यह एक ऐसी घटना है जब प्रशांत महासागर का भूमध्यीय क्षेत्र (विशेषकर मध्य और पूर्वी भाग) सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। यह "गर्म" घटना भारतीय मानसून के लिए अशुभ मानी जाती है और अक्सर सूखे की स्थिति पैदा करती है।
  • ला नीना (La Nina): "ला नीना" का अर्थ है "छोटी लड़की"। यह एल नीनो के ठीक विपरीत है। इसमें प्रशांत महासागर का यही क्षेत्र सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है। यह "ठंडी" घटना भारत के लिए शुभ संकेत होती है और आमतौर पर अच्छी, सामान्य से अधिक बारिश लेकर आती है।
  • न्यूट्रल स्थिति: जब समुद्र का तापमान सामान्य सीमा में होता है, तो उसे ENSO न्यूट्रल स्थिति कहा जाता है।

2 निनो इंडेक्स: एल नीनो-ला नीना की ताकत मापने का पैमाना

वैज्ञानिक प्रशांत महासागर को चार क्षेत्रों में बांटकर इनकी निगरानी करते हैं:

  1. निनो 1+2: दक्षिण अमेरिका के तट के सबसे नज़दीक का क्षेत्र।
  2. निनो 3: निनो 1+2 के पश्चिम में स्थित क्षेत्र।
  3. निनो 4: सबसे पश्चिमी क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा के near.
  4. निनो 3.4: निनो 3 और निनो 4 के बीच का क्षेत्र। यह सबसे महत्वपूर्ण इंडेक्स है क्योंकि एल नीनो या ला नीना की तीव्रता और आधिकारिक रूप से उसकी घोषणा इसी क्षेत्र के समुद्री सतह के तापमान के आधार पर की जाती है।

थ्रेसहोल्ड मान: यदि निनो 3.4 क्षेत्र का तापमान सामान्य से +0.5°C अधिक है, तो यह एल नीनो की स्थिति मानी जाती है। यदि यह सामान्य से -0.5°C कम है, तो यह ला नीना की स्थिति होती है। -0.5°C से +0.5°C के बीच की स्थिति को न्यूट्रल माना जाता है।

हिंद महासागर की भूमिका - इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)

1 IOD क्या है? हिंद महासागर का तापमान ढाल

इंडियन ओशन डाइपोल (IOD), जिसे भारतीय निनो (Indian Nino) भी कहा जाता है, हिंद महासागर में होने वाली एक ऐसी ही घटना है लेकिन इसका scale अपेक्षाकृत छोटा होता है। IOD हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों के बीच समुद्र की सतह के तापमान के अंतर को दर्शाता है।

  • पॉजिटिव IOD (+IOD): जब पश्चिमी हिंद महासागर (अरब सागर और अफ्रीका के तट के near) पूर्वी हिंद महासागर (इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया के तट के near) की तुलना में अधिक गर्म हो जाता है।

    • प्रभाव: पॉजिटिव IOD भारतीय मानसून के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। गर्म पश्चिमी हिंद महासागर के ऊपर नमी से भरी हवाएं ऊपर उठती हैं, जिससे एक low-pressure area बनता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप की ओर नमी से भरी हवाओं को आकर्षित करने में मदद करता है, जिससे अच्छी बारिश होती है।
  • नेगेटिव IOD (-IOD): जब पूर्वी हिंद महासागर, पश्चिमी हिंद महासागर की तुलना में अधिक गर्म हो जाता है।

    • प्रभाव: नेगेटिव IOD भारतीय मानसून के लिए प्रतिकूल होता है। यह मानसूनी हवाओं को कमजोर करता है और मानसून के core zone में बारिश को suppress या कम कर देता है, जिससे सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • न्यूट्रल IOD: जब दोनों क्षेत्रों का तापमान लगभग बराबर होता है।

2 IOD का मानसून पर तात्कालिक प्रभाव

IOD का effect कुछ हफ्तों के lag के साथ दिखाई देता है। मानसून के शुरुआती दिनों में एक नेगेटिव IOD की स्थिति खतरनाक हो सकती है और मानसून को fail करने का कारण बन सकती है। हालांकि, मानसून season के अंत की ओर इसका प्रभाव relatively कम होता है।

सदर्न ऑसिलेशन इंडेक्स (SOI)

सदर्न ऑसिलेशन इंडेक्स (SOI), ENSO का वायुमंडलीय पहलू है। यह प्रशांत महासागर के दो विपरीत छोरों पर स्थित दो स्थानों - डार्विन (ऑस्ट्रेलिया) और ताहिती (फ्रेंच पोलिनेशिया) - के बीच वायुमंडलीय दबाव के अंतर को measure करता है।

  • SOI की गणना: SOI = (ताहिती का दबाव - डार्विन का दबाव)
  • पॉजिटिव SOI: जब ताहिती का दबाव डार्विन के दबाव से अधिक होता है, तो SOI पॉजिटिव होता है। यह स्थिति ला नीना से जुड़ी होती है और मानसून के लिए अनुकूल मानी जाती है।
  • नेगेटिव SOI: जब डार्विन का दबाव ताहिती के दबाव से अधिक होता है, तो SOI नेगेटिव होता है। यह स्थिति एल नीनो से जुड़ी होती है और मानसून के लिए प्रतिकूल मानी जाती है।

SOI, एल नीनो और ला नीना की पुष्टि करने का एक महत्वपूर्ण सूचक है।

2025 के मानसून पैरामीटर्स की करेंट स्थिति

अब हम उपरोक्त theory को current data के साथ जोड़कर देखते हैं कि 2025 के मानसून season में ये पैरामीटर किस स्थिति में हैं।

1 ENSO: न्यूट्रल से La Nina की ओर झुकाव

  • निनो 3.4 इंडेक्स: अगस्त 2025 के अंतिम सप्ताह में, निनो 3.4 इंडेक्स का value -0.4°C था। चूंकि यह value -0.5°C के थ्रेसहोल्ड के very close है, इसलिए यह एक न्यूट्रल स्थिति का संकेत देता है, लेकिन एक ला नीना की शुरुआत की ओर इशारा करता है।
  • पूर्वानुमान: मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि autumn (पतझड़) या year-end (साल के अंत) तक पूर्ण रूप से ला नीना की स्थिति बन सकती है। चूंकि भारत का मानसून सितंबर तक खत्म हो जाता है, इसलिए इस साल के मानसून पर ला नीना का direct impact कम होगा, लेकिन इसकी शुरुआत एक सकारात्मक संकेत है।

2 IOD: चिंता का विषय - Strong Negative Phase

  • Current Value: 24 अगस्त, 2025 को IOD का साप्ताहिक value -1.2 था। यह एक मजबूत नेगेटिव IOD की स्थिति है।
  • तुलना: यह value August 2022 के बाद से सबसे कम है, यानि लगभग 3 साल में सबसे strong negative IOD है।
  • प्रभाव: एक strong negative IOD मानसून के लिए अच्छा संकेत नहीं है। यह मानसूनी circulation को कमजोर कर सकता है। (Luckily), मानसून का अधिकांश हिस्सा (जून, जुलाई, अगस्त) almost complete हो चुका है। केवल सितंबर महीना बाकी है। अगर यह स्थिति मानसून की शुरुआत में आती, तो यह मानसून को fail करने का कारण बन सकती थी। हालांकि, सितंबर की बारिश पर इसके negative effect की संभावना बनी हुई है।

3 SOI: न्यूट्रल रुख

  • Current Value: जुलाई 2025 के लिए SOI का monthly average value +0.6 था। अगस्त का data अभी आना बाकी है।
  • विश्लेषण: +0.5 का value एक न्यूट्रल स्थिति को दर्शाता है, जो कि current ENSO न्यूट्रल स्थिति के अनुरूप है।

निष्कर्ष: कुल मिलाकर, तीनों parameters की current स्थिति बताती है कि ENSO न्यूट्रल है, IOD strong negative है, और SOI न्यूट्रल है। इस combination का overall effect मानसून पर mixed रहा है।

2026 मानसून - एक स्नैपशॉट (1 जून - 26 अगस्त)

मानसून के इन पैरामीटर्स का असर देश में actual rainfall पर कैसा दिख रहा है, आइए देखते हैं।

  • देशव्यापी वर्षा: 1 जून से 26 अगस्त, 2025 तक, देश में cumulative rainfall Long Period Average (LPA) का 104% रहा है। यह एक सामान्य से अधिक (above normal) की श्रेणी में आता है।

    • वास्तविक वर्षा: 693.5 mm
    • सामान्य वर्षा: 664.7 mm
  • क्षेत्रवार विभिन्नता (Regional Variation):

    • कम वर्षा वाले क्षेत्र:

      • बिहार: -27% (सामान्य से 27% कम)
      • असम-मेघालय: -39% (गंभीर कमी)
      • दक्षिणी प्रायद्वीप: केरल, तमिलनाडु, दक्षिणी कर्नाटक, तेलंगाना के some parts में 15% तक की कमी।
    • अधिक वर्षा वाले क्षेत्र:

      • पश्चिमी राजस्थान & पूर्वी राजस्थान
      • मध्य प्रदेश
      • गुजरात
      • मराठवाड़ा जैसे सूखा-प्रवण इलाके में भी स्थिति सुधरी है और वर्षा -4.4% है, जो almost normal है।

विश्लेषण: अगस्त का महीना उथल-पुथल भरा रहा। पहले दो सप्ताह में कम बारिश के कारण cumulative आंकड़ा 106% से गिरकर लगभग 100% पर आ गया था, जिससे कृषि को नुकसान की आशंका पैदा हो गई थी। लेकिन 14-20 अगस्त (सामान्य से 22% अधिक वर्षा) और 21-27 अगस्त (सामान्य से 35% अधिक वर्षा) में हुई भारी बारिश ने situation को फिर से संभाल लिया और cumulative average को 104% तक पहुंचा दिया।

सितंबर 2025 मानसून आउटलुक

आने वाले 10-12 दिनों के लिए मौसमी गतिविधियों के आधार पर पूर्वानुमान इस प्रकार है:

  • सक्रिय मानसूनी Conditions: बंगाल की खाड़ी में एक low-pressure area बना हुआ है, जो और strengthen हो सकता है। यह system उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से होकर गुजरेगा।
  • अच्छी वर्षा के संभावित क्षेत्र: पूर्वी भारत, मध्य भारत, पश्चिमी भारत और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में अगस्त के अंतिम दिनों और सितंबर के पहले सप्ताह में अच्छी बारिश होने की संभावना है।
  • कम वर्षा वाले क्षेत्र: दक्षिणी भारत के अधिकांश हिस्सों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, दक्षिणी कर्नाटक, केरल) में वर्षा सामान्य से कम रहने का अनुमान है। शहरों like चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद में भी कम बारिश की संभावना है।
  • सितंबर पर IOD का प्रभाव: strong negative IOD का negative effect सितंबर की बारिश पर दिख सकता है, जिससे महीने का अंतिम पड़ाव weak हो सकता है।
  • मानसून की वापसी: मानसून की वापसी आमतौर पर 15 सितंबर के आसपास पश्चिमी राजस्थान से शुरू होती है। Its official date 17 सितंबर मानी जाती है।

निष्कर्ष: 

मानसून को समझना सिर्फ बादलों और बारिश को समझना नहीं है; यह समुद्र की गहराइयों, वायुमंडल के दबाव और हज़ारों किलोमीटर दूर होने वाली घटनाओं के बीच के complex relationship को समझना है। एल नीनो, ला नीना, IOD और SOI जैसे पैरामीटर इसी जटिल puzzle के महत्वपूर्ण टुकड़े हैं।

2025 का मानसून अब तक national level पर सामान्य से better रहा है, हालांकि regional variations (जैसे बिहार और North-East में कमी) देखने को मिली हैं। आने वाला सितंबर महीना negative IOD के प्रभाव में रह सकता है, लेकिन short-term में active systems अच्छी बारिश दिला सकते हैं।

इन पैरामीटर्स की समझ न सिर्फ मौसम विशेषज्ञों, बल्कि किसानों, policy makers और आम जनता के लिए भी जरूरी है ताकि हम प्रकृति की इस अनूठी लय के साथ तालमेल बैठाकर चल सकें और एक sustainable future की ओर बढ़ सकें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. एल नीनो और ला नीना में क्या अंतर है?

एल नीनो प्रशांत महासागर के गर्म होने की घटना है जो भारत में कम बारिश का कारण बनती है। ला नीना इसके ठीक विपरीत है, जिसमें प्रशांत महासागर ठंडा होता है और भारत में अच्छी बारिश होती है।

2. पॉजिटिव IOD मानसून के लिए अच्छा क्यों होता है?

पॉजिटिव IOD में पश्चिमी हिंद महासागर गर्म होता है, जिससे वहाँ low-pressure बनता है और भारत की ओर नमी से भरी हवाएँ आकर्षित होती हैं, जिससे अच्छी बारिश होती है।

3. क्या इस साल (2025) ला नीना है?

अगस्त 2025 के end तक, हम ENSO न्यूट्रल स्थिति में हैं, लेकिन निनो 3.4 इंडेक्स का value (-0.4°C) ला नीना की ओर इशारा कर रहा है। पूर्ण रूप से ला नीना की स्थिति साल के end तक बनने की संभावना है।

4. बिहार में इस साल बारिश कम क्यों है?

मानसून की regional variations के कारण। मानसून trough की position और बनने वाले low-pressure systems का रास्ता ऐसा रहा कि बिहार और पूर्वोत्तर में बारिश की कमी रही, जबकि मध्य और पश्चिमी भारत में अधिकता रही।

5. क्या सितंबर में अच्छी बारिश होगी?

शुरुआती सितंबर में active monsoon conditions के कारण मध्य, पश्चिमी और उत्तरी भारत में अच्छी बारिश हो सकती है। लेकिन strong negative IOD के कारण सितंबर के second half में rainfall activity weak हो सकती है, खासकर दक्षिणी भारत में।

WhatsApp Group Join Now
MP KISAN NEWS किसानो का एक विश्वशनीय पोर्टल, जहां खेती किसानी, मंडी भाव और किसान समाचार से जुड़ी हर खबर किसानो के लिए उपलब्ध होती है | इस पोर्टल (वेबसाइट) को हमारी टीम द्वारा शकुशलता से मैनेज किया जाता है और आप तक हर प्रकार की जानकारी आसान भाषा में पंहुचाई जाती है • धन्यवाद