गेहूं में कब और कितने पानी देना चाहिए, देखे गेहूं की महत्वपूर्ण सिंचाई अवस्थाएं और उनके महत्त्व

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गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए समय पर सिंचाई अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। सिंचाई की सही योजना बनाना गेहूं की फसल की स्वस्थ वृद्धि और पैदावार को बढ़ाने में सहायक होता है। गेहूं की सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण क्रांतिक अवस्थाएं (critical stages) वह समय होता है जब पौधे को पानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। अगर इन अवस्थाओं में पौधों को पर्याप्त पानी नहीं मिलता, तो उपज में भारी कमी हो सकती है। 

गेहूं में सिंचाई के लिए 6 महत्वपूर्ण और क्रांतिक अवस्थाएं

1. पहली सिंचाई (बुआई के 20-25 दिन बाद - मुख्य जड़ निकलने की अवस्था)(CRI Stage in wheat)

महत्व: इस समय पर पौधे की जड़ें विकासशील होती हैं, और जड़ों का बेहतर विकास होने के लिए मिट्टी में नमी की जरूरत होती है। जड़ें मजबूत होंगी तो पौधा अच्छी तरह से पोषक तत्वों को ग्रहण कर सकेगा।

लाभ: मजबूत जड़ प्रणाली और पौधों का अच्छे से स्थापित होना।

2. दूसरी सिंचाई (45-50 दिन बाद - कल्ले बनने की अवस्था)

महत्व: इस अवस्था में पौधे में अधिक संख्या में कल्ले (नए तने) विकसित होते हैं। सही समय पर सिंचाई न मिलने पर कल्लों की संख्या कम हो जाती है।

लाभ: अधिक कल्लों का विकास, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ती है।

3. तीसरी सिंचाई (60-65 दिन बाद - गांठ बनने की अवस्था)

महत्व: इस समय पौधे के तनों में गांठें बनने लगती हैं, जो फसल की आगे की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। इस अवस्था में पौधों को पानी की अच्छी मात्रा की आवश्यकता होती है।

लाभ: फसल की बेहतर वृद्धि और तनों की मजबूत संरचना।

4. चौथी सिंचाई (80-85 दिन बाद - बालियाँ निकलने की अवस्था)

महत्व: यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय पर पौधों में बालियाँ (फूल) निकलना शुरू होती हैं। बालियाँ निकलते समय मिट्टी में नमी की कमी से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

लाभ: बालियों का स्वस्थ विकास और दाने बनने की प्रक्रिया को समर्थन मिलता है।

5. पाँचवीं सिंचाई (100-105 दिन बाद - दूधिया अवस्था)

महत्व: इस अवस्था में दाने दूधिया (soft dough) अवस्था में होते हैं। इस समय सिंचाई करने से दानों का आकार और गुणवत्ता अच्छी होती है।

लाभ: दानों का भराव अच्छे से होता है, जिससे दाने वजनदार और पोषक बनते हैं।

6. छठी सिंचाई (115-120 दिन बाद - पकने की अवस्था)

महत्व: यह अंतिम सिंचाई होती है, और इस समय दाने पकने की प्रक्रिया में होते हैं। इस सिंचाई से दानों का अंतिम भराव और वजन बढ़ता है।

लाभ: दानों का बेहतर वजन और उपज में वृद्धि होती है।

सीधा सा गणित है अगर आप लंबी वैरायटी के गेहूं की खेती कर रहे हो तो हर 20 से 22 दिन के बाद आपको गेंहू में पानी देना है कुल छः पानी देना है, याद रहे पहला पानी 20 से 25 दिनों के बीच ही देवे जल्दी ना करे, इससे आपकी फसलों में पीलेपन की समस्या से भी बचा जा सकेगा|

लेकिन विपरीत परिस्थिति जैसे सुखी पथरीली भूमि,रेतीली या कम मिट्टी वाली भूमि होने पर पानी जल्दी दे सकते है या अधिक सिंचाई भी कर सकते है |

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अगर केवल 3 सिंचाई ही उपलब्ध हो तब 

गेहूं में सिंचाई की 3 महत्वपूर्ण क्रान्तिक अवस्थाएं

1. क्राउन रूट इनिशिएशन (CRI) अवस्था

समय: बुवाई के 20-25 दिन बाद।

महत्व: यह गेहूं की फसल में सबसे महत्वपूर्ण अवस्था मानी जाती है, क्योंकि इस समय पौधों में जड़ों का विकास होता है। अगर इस समय पर सिंचाई नहीं की जाती है, तो पौधों की जड़ें कमजोर रह जाती हैं, जिससे आगे की वृद्धि और उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

2. तना बढ़ाव गाभ (टिलरिंग/जॉइंटिंग) अवस्था

समय: बुवाई के 40-45 दिन बाद।

महत्व: इस अवस्था में पौधों की वृद्धि तेजी से होती है और तने की संख्या में वृद्धि होती है। इस समय पर पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने से पौधों की वृद्धि को बढ़ावा मिलता है, जो आगे चलकर अच्छी पैदावार में सहायक होता है।

3. दूधिया अवस्था

समय: बुवाई के 70-75 दिन बाद।

महत्व: इस अवस्था में गेहूं की बालियों में दाने बन रहे होते हैं और उनमें दूध भरने की प्रक्रिया चलती है। यदि इस समय पर पौधों को पर्याप्त पानी नहीं मिलता है, तो दाने छोटे और हल्के रह सकते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज प्रभावित होती है।


यदि आपके पास केवल 2 सिंचाई की ही व्यवस्था हो तब

अगर केवल दो सिंचाइयां ही उपलब्ध हों, तो उन्हें गेहूं की सबसे अति महत्वपूर्ण अवस्थाओं पर करना चाहिए, ताकि उपज पर न्यूनतम नकारात्मक प्रभाव पड़े। इन अवस्थाओं का चयन पौधे की उन अवस्थाओं के आधार पर किया जाता है, जब पानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। निम्नलिखित दो अवस्थाएं सिंचाई के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं:

1. कल्ले फूटने की अवस्था (Tillering Stage)

  • अवधि: बुआई के 20-25 दिन बाद।
  • महत्व: इस अवस्था में पौधे में कल्ले निकलते हैं, जो सीधे-सीधे उपज की मात्रा को प्रभावित करते हैं। अगर इस समय पानी नहीं मिलता है, तो कल्ले कम निकलते हैं, जिससे उत्पादन में भारी कमी हो सकती है।
  • सिंचाई: पहली सिंचाई इस अवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कल्लों की संख्या बढ़ाने और पौधे के प्रारंभिक विकास के लिए आवश्यक है। पर्याप्त पानी मिलने से पौधे की जड़ें मजबूत होती हैं और पौधा अधिक शाखाएं बनाता है, जो भविष्य की उपज में वृद्धि का आधार है।

2. फूल आने की अवस्था (Booting Stage)

  • अवधि: बुआई के 70-75 दिन बाद।
  • महत्व: इस अवस्था में पौधों में फूल बनते हैं और दानों की संख्या तथा गुणवत्ता निर्धारित होती है। यदि इस समय पानी की कमी हो जाती है, तो फूल सही से विकसित नहीं होते हैं और दाने कमजोर या कम बनते हैं, जिससे उपज प्रभावित होती है।
  • सिंचाई: दूसरी सिंचाई फूल आने से ठीक पहले करनी चाहिए। यह सिंचाई पौधे को आवश्यक नमी प्रदान करती है, जिससे फूलों और दानों का सही विकास होता है और उपज की गुणवत्ता बेहतर होती है।

निष्कर्ष:

यदि केवल दो सिंचाइयां ही की जा सकती हैं, तो उन्हें कल्ले फूटने और फूल आने की अवस्थाओं में करना चाहिए। ये दोनों अवस्थाएं उपज की मात्रा और गुणवत्ता को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। इन अवस्थाओं में सही समय पर सिंचाई करने से उपज में सुधार होता है, जबकि अन्य अवस्थाओं में पानी की कमी होने पर भी उपज पर उतना नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।


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