New wheat variety dbw 303 karan vaishnavi details in hindi
अभी तक की सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों की बात करे तो करण वैष्णवी 303 का नाम जरूर जुबां पर आता है,
DBW 303 “करण वैष्णवी” gehu किस्म को भारतीय जौ एवं अनुसंधान संस्थान करनाल द्वारा विकसित की गई है। इस किस्म को 2021 मे अधिसूचित किया है। यह किस्म 145 – 156 दिन में पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है। लगभग 70 से 80 दिनों के आसपास पौधे में बाली आ जाती है।
Wheat variety DBW 303 करण वैष्णवी/ karan vaishnavi गेहूं की किस्म को उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है।
इसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर जिलों को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश के (झांसी क्षेत्र को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले), हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) के कुछ हिस्सों में खेती के लिए उपयुक्त माना गया है।
DBW 303 गेहूं की किस्म की उत्पादन विशेषताएं :
1. उत्पादन क्षमता :
- अखिल भारतीय समन्वित गेंहू अनुसंधान परियोजना के तहत परीक्षणों में इस किस्म की औसत उपज 81.2 क्विंटल/हेक्टेयर पाई गई।
- इसकी पैदावार, HD 2967 और HD 3086 किस्मों की तुलना में क्रमशः 30.3% और 11.7% अधिक पाई गई।
2. उत्पादन क्षमता का रिकॉर्ड :
- उत्पादन परीक्षणों में इस किस्म ने 97.4 क्विंटल/हेक्टेयर तक की रिकॉर्ड पैदावार दर्ज की है।
3. स्थिरता :
- पूरे क्षेत्र में इस किस्म ने स्थिर उत्पादन क्षमता दिखाई है और इसमें अधिक पोषक तत्वों और वृद्धि नियंत्रकों के उपयोग के लिए अच्छे परिणाम देखे गए हैं।
इन विशेषताओं के कारण यह किस्म उच्च उपज देने वाली और टिकाऊ खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।
डी बी डब्ल्यू 303 (करण वैष्णवी) किस्म की विशेषताएँ
विशेषता | अंतररण | औसत |
---|---|---|
बालें निकलने की अवधि (दिनों में) | 92–114 | 101 |
पकने की अवधि (दिनों में) | 143–160 | 156 |
पौधों की ऊँचाई (सेमी) | 92–118 | 104 |
1000 दानों का वजन (ग्राम) | 37–48 | 42 |
डी बी डब्ल्यू 303 (करण वैष्णवी) की उत्पादन पद्धति
विषय | विवरण |
---|---|
प्रजाति | डी बी डब्ल्यू 303 (करण वैश्वी) |
उपयुक्तता | यह प्रजाति उत्तर पश्चिमी भारत के सिंचाई क्षेत्र में समय पर बुआई के लिए उपयुक्त है। |
भूमि का चयन एवं तैयारी | समतल उपजाऊ खेत में उपयुक्त नमी होने पर खेत की तैयारी करके बुआई करें। |
बीज उपचार | गेहूँ के कंडवा रोग से बचने के लिए वीटावैक्स (कार्बॉक्सिन 37.5% + थीरम 37.5%) 2–3 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए। |
बुआई का समय | 25 अक्टूबर – 05 नवम्बर |
बीज दर और अंतराल | 100 किग्रा बीज/हेक्टेयर का इस्तेमाल करके पौधों के बीच 20 सेमी की दूरी के साथ बुआई की जानी चाहिए। |
उर्वरकों की मात्रा एवं उपयोग का समय |
उर्वरकों का उपयोग मृदा परीक्षण पर आधारित होना चाहिए। उच्च उत्पादन वाली भूमि के लिए – एन: 150, पी: 60, के: 40 किग्रा/हेक्टेयर। फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करें। शेष मात्रा सिंचाई के बाद फूल आने से पहले डालें। |
खरपतवार नियंत्रण |
• पेंडीमेथालिन नामक खरपतवारनाशी की 400 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से बीजाई के 0–3 दिनों के अंदर प्रयोग करना चाहिए। • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2,4-D नामक दवा की 200 ग्राम/एकड़ अथवा मेट्सल्फ्यूरोन 8 ग्राम/एकड़ या कारफेंट्राजोन 8 ग्राम/एकड़ नामक दवा को 120 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है। • संकरी पत्ती या घासों के नियंत्रण के लिए क्लोडिनाफॉप 24 ग्राम या फेनॉक्साप्रोप 40 ग्राम/एकड़ स्प्रेयर में 10 ग्राम चिपकाने वाली दवा के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। मिश्रित खरपतवारों के नियंत्रण के लिए क्लोडिनाफॉप या फेनॉक्साप्रोप को मेट्सल्फ्यूरोन या आईसोप्रोटुरॉन के साथ छिड़काव करें। खरपतवार नमी की अवस्था पर छिड़काव किया जाना चाहिए। |
वृद्धि नियन्त्रक |
• अगती बुवाई व 150% एन पी के उपयोग करने पर वृद्धि नियन्त्रकों (क्लोरमक्वाट क्लोराइड (CCC) 0.2% + टेकाप्राइमजोल 250 ईसी)/0.1% की दो बार छिड़काव (तने की पहली गाँठ निकलने पर और पहली गाँठ आने के समय) से इस फसल के गिरने से बचाया जा सकता है। • वृद्धि नियन्त्रकों को 200 लीटर पानी में 400 मिलीलीटर क्लोरमक्वाट क्लोराइड + 200 मिलीलीटर टेकाप्राइमजोल (व्यावसायिक उत्पाद मात्रा टैंक मिक्स) प्रति एकड़ मात्रा का प्रयोग दो बार करें। |
रोग एवं कीट नियंत्रण |
• माहू या बपा मक्खी कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल की 40 मिली/एकड़ मात्रा का छिड़काव करें। • दीमक के प्रभावी नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के समय क्लोरपायरीफोस 0.3 लीटर प्रति एकड़ की दर से 10 किलोग्राम रेत के साथ मिलाकर बुवाई के समय भूमि उपचार किया जा सकता है। |
सिंचाई | • इस बार गेहूँ की फसल को सामान्य: 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिसमें पहली सिंचाई बुवाई के 20–25 दिनों बाद तथा उसके बाद उपलब्ध नमी के आधार पर 25–35 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। |
कटाई | • पकाई अवस्था में यदि अधिकतर फसल की कटाई तृतीय तथा चतुर्थ अवस्था के बाद की जाए, तो बेहतर उपज तथा भण्डारण के लिए अच्छी गुणवत्ता प्राप्त होगी। |
अनुमानित उपज | किस्म की उपज 81.2 कु. प्रति हेक्टेयर |
उत्पादन क्षमता | 97.4 कु. प्रति हेक्टेयर |
DBW 303 गेहूं की किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता :
1. रतुआ रोग प्रतिरोधकता :
- DBW 303 किस्म पीली रतुआ (Yellow Rust), भूरी रतुआ (Brown Rust), और काली रतुआ (Black Rust) जैसे प्रमुख रतुआ रोगों के प्रति प्रतिरोधक है, जो गेहूं की खेती में आम हैं और फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
2. कंडुवा (Karnal Bunt) प्रतिरोध :
- इस किस्म में कंडुवा रोग के प्रति 4.2% तक प्रतिरोधकता पाई गई है, जो इसे इस फंगल रोग से सुरक्षित बनाता है।
3. ब्लास्ट रोग प्रतिरोध :
- DBW 303 में गेहूं ब्लास्ट रोग के प्रति उच्च प्रतिरोधक क्षमता देखी गई है, जो इसे इस गंभीर रोग के प्रकोप से बचाने में सक्षम बनाती है।
4. झुलसा रोग प्रतिरोध :
- यह किस्म पत्तों और तनों के झुलसा (Leaf Blight) रोगों के प्रति भी प्रतिरोधक मानी गई है।
इन रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण DBW 303 किस्म अधिक टिकाऊ और सुरक्षित उत्पादन के लिए उपयुक्त है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां इन बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है।