गेहूं में यूरिया कब डालना चाहिए | गेहूं में (LCC) लीफ कलर चार्ट के प्रयोग और महत्त्व

Shankar Aanjana
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यूरिया नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत है, जो पौधों के विकास और उत्पादन के लिए आवश्यक होता है। नाइट्रोजन पौधों में प्रोटीन के निर्माण में मदद करता है, जिससे पौधे की पत्तियां हरी और स्वस्थ रहती हैं यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) को बढ़ाती है, जो पौधे के भोजन निर्माण और ऊर्जा उत्पादन के लिए आवश्यक होती है। 

यूरिया देते समय सावधानी 

हमारे द्वारा गेहूं की फसल में यूरिया का प्रयोग बिना किसी ज्ञान या तकनीकी विश्लेषण के अंधा धुंध प्रयोग किया जा रहा है, जिससे हमारी लागत तो बढ़ रही है पर उसका हमारी फसल की वृद्धि और उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ रहा | 

  • यूरिया देने का गलत तरीका : कई किसान भाई यूरिया को पानी देने से कई कई दिनों पहले खेतो में एक साथ उड़ा देते है जिससे यूरिया के दाने समय से पहले पिघल कर वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में मिल जाते है और पौधे को मिल ही नहीं पाते या पूरी मात्रा में नही मिलते है |
  • एक साथ अधिक मात्रा का प्रयोग : ज्यादातर किसान भाई गेहूं में यूरिया की सारी मात्रा एक ही समय पर डाल देते है जिससे आने वाले समय में पौधे को जब यूरिया की कमी होती है तब हम उसे पूरी नहीं कर पाते |
  • ओस की बूंदे : कई बार हम जल्दबाजी में ओस की बूंदे सूखने के पहले ही यूरिया का प्रयोग हमारी फसलों पर कर देते है जिससे फसलों में पत्तियां व पौधे जलने की समस्या आती है |

गेहूं में यूरिया कब दे

गेहूं में यूरिया कब और कितनी मात्रा में दे

गेहूं की फसल में यूरिया (नाइट्रोजन) का सही समय पर इस्तेमाल करना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि पौधे अच्छी वृद्धि कर सकें। सामान्यतः गेहूं में यूरिया निम्नलिखित चरणों में दिया जाता है:

1. पहली बार: बुआई के समय (बेसल डोज में)

  • बुआई के समय खेत में कुल आवश्यकता का लगभग 1/3 हिस्सा यूरिया दिया जाता है।
  • जब आप गेहूं की बुआई के लिए खेत तैयार कर रहे होते हैं, तो बुआई के पहले आधी मात्रा में यूरिया (नाइट्रोजन) खेत में दिया जाता है। यह पौधे की शुरुआती वृद्धि के लिए जरूरी है।

    सावधानी ∆ : याद रहे यूरिया को सीधा बीज के संपर्क में ना आने दे या बीज के साथ यूरिया ना डाले इससे बीज सड़ सकता है |

    2. दूसरी बार: पहली सिंचाई के समय (20-25 दिनो में)

    जब फसल लगभग 20-25 दिन की हो जाए और पहली सिंचाई की जाए, तब यूरिया की दूसरी मात्रा दी जाती है। यह अवस्था गेहूं की फसल में महतवपूर्ण अवस्था होती इस अवस्था को Crown Root Initiation या CRI अवस्था भी कहा जाता है, इस समय पौधे को अच्छे विकास के लिए नाइट्रोजन और पानी दोनो की आवश्यकता होती है।


    3. तीसरी बार: दूसरी सिंचाई के समय (40-50 दिन पर)

    गेहूं में दूसरी सिंचाई के साथ यूरिया की अंतिम शेष बची मात्रा दी जाती है। इससे पौधे में अधिक कल्ले और बालियाँ बनने में मदद मिलती है |

    यूरिया का सही समय पर उपयोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होता है। एक साथ पूरी मात्रा में यूरिया देने की बजाए हमे 2 या 3 बार में देना चाहिए जिससे पौधे की अलग अलग अवस्थाओं में भी यूरिया की कमी को पूरा किया जा सके और पौधे का वानस्पतिक विकास अच्छे से हो सके|

    यूरिया की उचित मात्रा का अवश्य रखे ध्यान 

    किसानों द्वारा फसलों में खाद डाली जाती है ताकि पैदावार अच्छी हो, लेकिन अच्छी पैदावार के लालच में बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से फसलें अच्छी होने की बजाय खराब हो जाती हैं.

    दरअसल, पौधों की उर्वरक की अपनी मांग होती है. अगर फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरकों का प्रयोग किया जाए तो फसल बेहतर होती है. अगर बिना समझे-बूझे फसल में उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है तो फसल के नुकसान के साथ लागत भी बढ़ती है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम होती है |

    LCC लीफ कलर चार्ट के प्रयोग से जाने पौधे में यूरिया की कमी 

    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा फसल विज्ञान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है की गेहूं की हरियाली को एक संकेतक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. 

    गेहूं की पत्तियों का रंग कितना गहरा या कितना हल्का है, ये तय करता है कि फसल को नाइट्रोजन की उचित मात्रा ज़मीन से मिल पा रही है या नहीं. इस प्रश्न के लिए सबसे सस्ता और आसान हल है लीफ कलर चार्ट यानी रंग मापी पट्टी. ये एक प्लास्टिक की शीट होती है जिसमें हरे रंग के कुछ कॉलम बने होते हैं.

    चार्ट, गहरे हरे रंग से लेकर पीले- हरे रंग तक के 6 कॉलम में बंटा होता है. हर कॉलम की नंबरिंग होती है और पत्तियों से मिलान के बाद तय नंबरिंग के अनुसार नाइट्रोजन का डोज बताया गया है. ऐसी चार्ट बाजारों में आसानी से उपलब्ध है जो मात्र 50-60 रुपये में किसानों को मिल जाती है. 

    चार्ट के अनुसार फ़सल का रंग जितने गहरे हरे रंग का होगा, उसमें उतनी ज्यादा नाइट्रोजन की मात्रा होगी. ज़ाहिर है तब फसल में यूरिया की ज़रूरत कम होगी और अगर पौधों मे नाइट्रोजन की कमी होगी तो गेहूं की पत्तियों का रंग भी हल्का हरा या पीला होगा |

    कैसे करें पत्तियों के रंग से लीफ कलर चार्ट (LCC) का मिलान?

    कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि 21 दिन की गेहूं की फसल से लेकर गेहूं में बालियां निकलने की शुरुआती अवस्था तक लीफ कलर चार्ट का इस्तेमाल करें. इसके लिए खेत के 10 प्रतिनिधि पौधों का चुनाव करें. सुबह 8-10 बजे या शाम में 2 से 4 बजे के बीच चयन किए गए इन पौधों की शीर्ष पत्तियों के रंगों का चार्ट से मिलान करें. अगर 10 पत्तियों में से 6 पत्तियों का रंग ऊपर के गहरा हरा, हरा या धानी वाले कॉलम 6,5, और 4 के रंगों के अनुसार है तो खेतों में नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं करना होता है. अगर गेहूं की पत्तियों का रंग लीफ कलर चार्ट में कॉलम 3 से लेकर कॉलम 1 के रंग से मिलता है, तो गेहूं की फसल में नाइट्रोजन का प्रयोग करना जरूरी है.



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